एक प्रेम पत्र ऐसा भी
एक प्रेम पत्र ऐसा भी
आज की पीढ़ी के लिए प्रेम पत्रों की अहमियत शायद ना के बराबर हो, भला इंटरनेट, 5g के जमाने में जहां fb, WhatsApp, Instagram और लाइव कॉलिंग, वीडियो कॉलिंग हो सकती है तो फिर किसी कबूतर या फिर गली के बच्चोंं के हाथ प्रेम पत्र भेजना ऐसा ही लगता है जैसे आधुनिक युग में पाषाण युग की बातें।
पर साहब वो पोस्टकार्ड, इनलैंड लेटर का जमाना कुछ खास था, और प्रेम पत्र, उनको लिखने से लेकर जवाब आने का सफर कितना रोमांचक होता था ये आज के जवान प्रेम करने वाले क्या जाने।
सोचिए, सबसे पहले बाजार जाकर खास रंग और डिजाइन का नोट पैड खरीदना, फिर खास तौर पर खरीदे गए फाउंटेन पेन से एक एक अक्षर मोतियों सा सोच समझ कर लिखना किसी रोमांटिक नॉवेल से कम नही होता था।
रातों को जाग कर, कभी कभी पूरे पैड के आधे से ज्यादा कागजों को शहीद करने के बाद पूरा होता था प्रेम पत्र। फिर बहुत प्रेम से उसमें एक इत्र का फाहा संजोया जाता था, और कुछ गुलाब की पंखुड़ियां लपेटी जाती थी ताकि महबूब को अपने प्रेम की खुशबू से सराबोर किया जा सके।
फिर बहुत खूबसूरती से पत्र को सहेज कर लिफाफे के अंदर बंद किया जाता था।
उसके बाद अगर पिया परदेसी है तो सबसे छुप कर उसे पोस्ट किया जाता था।
ज्यादातर लोगों के महबूब वहीं आसपास के मोहल्ले के ही हुआ करते थे, अब असली समस्या होती थी पत्र को महबूब तक पहुंचाने कि, इस काम के लिए ज्यादातर उसकी किसी दोस्त या फिर छोटे बहन या भाई का सहारा लिया जाता था, जिन्हे कुछ न कुछ रिश्वत जैसे चॉकलेट इत्यादि देकर अपनी टीम में मिलाया जाता था।
और यदि आप एक ही स्कूल या कॉलेज में पढ़ते हैं तो किताबों या कॉपी का आदान प्रदान इस काम को बखूबी अंजाम देता था।
फिर इंतजार होता था पत्र पढ़े जाने का, और जवाब का..... इस दौरान के दिन बहुत उत्तेजना भरे होते थे। बार बार सिक्के उछाल कर देखा जाता था जवाब हां में आएगा या ना में।
करीबी मित्र सामने वाले खेमे पर पूरी जासूसी करके पता करते थे कि युद्ध होगा या प्रेम..... यानी जवाब में हां मिलेगी या पिटाई।
आसान नहीं था, प्रेमपत्रों का आदान प्रदान।
खैर इन सब से मिलता जुलता अपने विद्यार्थी जीवन का एक किस्सा याद आता है.... जिसमें इमोशन, एक्शन का भारी मात्रा में समावेश है.....
ना ..... ना...... मेरा खुद का किस्सा नहीं है... पर इस घटना का एक खास हिस्सा रहा हूं मैं.....।
बात हमारे स्कूल के दिनों की है.... हम शिमला के पास ही एक गांव के स्कूल में पढ़ते थे.... उसी स्कूल में पापा और मम्मी भी अध्यापक के रूप में कार्यरत थे, पापा उन दिनों सेकंड हेडमास्टर थे।
मेरे ताऊ जी का बेटा उन दिनों हमारे साथ ही रहता था और पढ़ता था, उमर में मुझ से एक साल पर पढ़ाई में एक साल पीछे।
उसकी क्लास में 2/3 लड़कियां थी और उन में से एक लड़की को वो बहुत पसंद करता था, और चाहता था उस से दोस्ती हो जाए। आखिर दिल्ली का मॉडर्न लड़का था ना और साथ में था हमारे डॉक्टर साहब का बेटा जो उसका खास मित्र था और देहरादून से पढ़ने आया था।
हम लोग स्कूल के एकदम पास रहते थे, यानी स्कूल ही घर और घर ही स्कूल।
पापा सेकंड हेडमास्टर थे इसलिए छुट्टी के दिनों में स्कूल की सभी चाभियां घर पर रहती थी।
एक सन्डे को दिमाग में शैतानी आ गई, सोचा क्यों ना उस लड़की को एक प्रेमपत्र लिख कर भाई के दिल की भावनाएं बताई जाएं।
आनन फानन में स्कूल की कॉपी के बीच के पन्ने फाड़ कर लेटर पैड बनाया गया, पर भाई की लिखाई क्योंकि बहुत खराब थी तो मैंने अपनी सेवाएं उपलब्ध कराई, पर साथ ही थोड़ी समझदारी से भी काम लिया, जानता था अगर गलती से भी पत्र किसी अध्यापक के पास पहुंच गया तो फट से लिखाई पहचान ली जाएगी, इसलिए 4/5 लाइन का प्रेम पत्र उल्टे हाथ से लिखा गया। भाई की क्लास की चाबियां लाकर क्लास रूम खोला और पहले प्रेम पत्र को लपेट कर उस कन्या के डेस्क की ड्रॉअर में रखा गया।
हमारे पास इत्र या गुलाब की पंखुड़ियां तो थी नहीं इसलिए भाई की होने वाली गर्लफ्रेंड को इंप्रेस करने के लिए उसके लिए एक मीठी गुड़ की डली पत्र के बीच लपेट दी।
कैडबरी तो जानते नहीं थे, पर कुछ मीठा होगा तो बात मीठी हो जायेगी, ऐसा विश्वास था।
बहुत सफाई से बिना किसी की नजरों में आए (वैसे संडे के दिन हमारे परिवार के अलावा कोई होता ही नहीं था आसपास) पत्र को अपनी जगह पहुंचा कर हम दोनो खुशी खुशी घर वापस आ गए।
अगले दिन सुबह हम दोनों बड़ी उम्मीद के साथ स्कूल पहुंचे कि शायद पत्र पढ़ते ही कुड़ी पट जायेगी और मुस्कुरा के मुंह मीठा करके मीठी सी नजर से देखेगी।
हां एक बात तो बताई नहीं... पत्र में सिर्फ उसका नाम था, भेजने वाले का नहीं..... सुरक्षा की दृष्टि से हमने भाई का नाम नहीं लिखा था, अगर हसीना ना मानी तो....
वही हुआ जो सोचा न था.... पहले ही पीरियड में उसने वो खत गुरु जी के हाथ में धर दिया.... बस फिर क्या था सारे स्कूल में हंगामा मच गया.... और सारे लोग शीघ्र ही अपराधी की तलाश में जुट गए।
पत्र की भाषा थोड़ी फिल्मी थी तो सबको समझते देर नहीं लगी... कि ये कारनामा किसका है....
शीघ्र ही मेरे भाई और उसके दोस्त की खातिरदारी शुरू हो गई, बस शुक्र ये ही था कि मैं बच गया फंसते फंसते... हमारे इंग्लिश के गुरुजी को तो पूरा यकीन था कि लिखावट मेरी है, पर मेरा पढ़ाई में अव्वल रहना और मेरे भाई का पूरे साहस और खामोशी से हेड गुरुजी और पापा के अत्याचार सहन करने की वजह से, जान बची और लाखों पाए।
बेचारा भाई का मित्र.... खामखा दोस्ती के चक्कर में घुन के जैसा पिस गया।
सालों बाद भी वो किस्सा आज भी जब याद आता है तो खुद की बेवकूफी और दुस्साहस पर बेसाख्ता हंसी छूट जाती है। साथ ही याद आती है उस भाई की और उसके दोस्त की, दोनों की ही असमय मृत्यु हो गई... और प्रेमपत्र का राज उन दोनों के साथ ही दुनिया से विदा हो गया।
आभार – नवीन पहल – ०९.०४.२०२३ 😊😊
# प्रतियोगिता हेतु
Anjali korde
21-Jul-2023 11:20 AM
Nice
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KALPANA SINHA
03-Jul-2023 01:55 PM
very nice
Reply
ऋषभ दिव्येन्द्र
10-Apr-2023 12:22 PM
वाह, क्या कमाल का और जोरदार संस्मरण साझा किया आपने
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